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गुस्ताखी माफ/शायरी

मानो या न मानो , गालियों का है ज़माना . पढ़िये नई नई गालियों के अविष्कार के बारे में...

गुस्ताखी माफ
मानो या न मानो , गालियों का है ज़माना . पढ़िये नई नई गालियों के अविष्कार के बारे में...


मैं अपने यहां नए पत्रकारों और लेखकों को प्रशिक्षित कर रहा था । मैं उन्हें बताना चाह रहा था कि कैसे अपनी
लेखनी में बेहतरी और पैनापन लाकर, वे अपने को जल्दी से जल्दी इस क्षेत्र में स्थापित कर सकते हैं । मैंने उन्हें
पत्रकारिता की अलग-अलग विधा के बारे में बताना चालू किया । हास्य- व्यंग , फीचर, राजनीति , क्राइम,
एजुकेशन, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम, घटना –दुर्घटना , भ्रष्टाचार, स्टिंग इत्यादि पर कैसे रिपोर्टिंग
करते हैं , बताते रहा . फिर मैंने उनसे पूछा कि किस तरह के लेखन में उनकी रूचि है ? वे अपने बारे में बताते
रहे, तभी एक ने कहा कि पत्रकार को अपनी रूचि के हिसाब से कभी-कभार लिखना चाहिए बल्कि उस वक्त के
पाठकों के मिजाज़ और फौरी आवश्यकतानुसार ही लिखना चाहिए , तभी उसके तेज़ी से ऊंचाई प्राप्त करने के,
चांसेज रहेंगे । आज के राजनैतिक माहौल में कोई लव स्टोरी लिखे तो उसे बेहद कम पसंद किया जायेगा । युवक
को तजुर्बा कम था पर उसकी बात में दम था । जब मैंने यह बात पत्रकार माधो को बताई तो वे हँसते हुए बोले
कि आज की आवश्यकतानुसार मुझे लगता है कि मैं गाली राइटर बन जाऊं . बल्कि जिस प्रकार इस चुनावी
मौसम में घर से गली तक और गलियों से लेकर उच्च स्तर के राजनेताओं के भाषणों तक गालियों की बौछार चल
रही है, उसे देखकर लगता है कि मैं गालियों की ही दुकान खोल लूं। कौन सी गाली किस नेता पर फबती है, इस
बात को ध्यान में रखते हुए गाली का स्टॉक रखूंगा, ताकि कोई भी लीडर अपनी पसंद से गाली खरीद सके और
दूसरे नेता पर तीखी से तीखी गालियों से हमले कर सके। मैं देश के नेताओं के लिए ऐसी गालियों का आविष्कार
करूंगा जो तेज हो, धारदार हो और मारक असर करे। जिनका इस्तेमाल वे किसी भी समय कर सकें। ऐसी
गालियां जो सरकार व चुनाव आयोग द्वारा सर्टिफाइड हों और उन्हें देते वक़्त ज्यादा सोचना समझना भी न
पड़े। मेरी गालियां भी कई कैटेगरी की होंगी । पहली होगी , पशु वाचक. यह आजकल सबसे ज़्यादा प्रचलन में
है, कुत्ता , पिल्ला , गधा, गिरगिट, लोमड़ी , सियार, बैल, सांड इत्यादि का उपयोग चुनाव में भरपूर किया जा
रहा है . मैं नई गालियों में कम प्रचलित , नए जानवरों के उपयोग पर जोर दूंगा, जैसे - अजगर सा आलसी ,
भेडिय़ा सा लालची , आवारा कुत्तों सा बेवफा , गेंगड़वा सा लिज़लिज़ा इत्यादि । दूसरी कैटेगरी में ऐतिहासिक
पात्रों पर आधारित गालियां होंगी . जैसे , आजकल रावण, कंस प्रचलन में है , वैसे ही, दुर्योधन सा लम्पट,
दुशासन सा नारी की साड़ी पर अत्याचारी जैसी अनेक गालियां ईजाद करूंगा । पत्रकार माधो ने आगे कहा ,
इसी तरह से फि़ल्मी गाली जैसे रणजीत सी नीयत इत्यादि , मॉडर्न गाली जैसे वायरस भरा पेन-ड्राइव इत्यादि
गाली को अपने ट्रेडमार्क के साथ जन-जन की ज़ुबान में पहुंचवा दूंगा । टीवी पर बहस करते नेताओं के लिए
अपने प्रतिद्वंदी के चारों खाने चित्त करने वाली गालियां भी मेरे तरकश से निकलेंगी । आगे-पीछे मुझे महान
गाली राइटर का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार भी मिल ही जायेगा । पत्रकार माधो का गालियों के प्रति इतना
भावनात्मक लगाव देखकर , मैंने तुरंत भागने में ही भलाई समझी क्योंकि मुझे दो-चा र गैर पारम्परिक
गालियों का उपयोग, ट्रायल बेसिस पर, खुद पर होने की संभावना नज़र आने लगी थी ।

इंजी मधुर चितलांग्या
प्रधान संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स

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